केदारनाथ त्रासदी में ‘मृत’ घोषित व्यक्ति परिवार को पुणे में इस हाल में मिला, जानिए पूरी कहानी

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हम अक्सर सुनते हैं कि सच कल्पना से भी ज़्यादा हैरान करने वाला होता है. हालांकि जब तक हम उसे अनुभव नहीं करते, तब तक यह केवल एक कहावत जैसी लगती है. लेकिन ‘शिवम’ और उनके परिवार के साथ जो हुआ वो इससे कहीं अनोखा मामला है.

इस परिवार ने शायद सोचा भी नहीं होगा कि जिसका श्राद्ध उन्होंने अपने हाथों से किया था, वे कुछ सालों बाद लौट आएगा. लेकिन पुणे के क्षेत्रीय मानसिक चिकित्सालय के कर्मचारियों और पुलिसकर्मियों के सहयोग से ऐसा ही कुछ हुआ है.

साल 2013 में केदारनाथ में आई बाढ़ में जिस व्यक्ति के बह जाने की ख़बर आई थी और जिसे मृत घोषित कर दिया गया था और फिर परिवार ने उसका प्रतीकात्मक अंतिम संस्कार कर श्राद्ध किया था, वो शख्स महाराष्ट्र में जीवित मिला है.

दरअसल, साल 2021 में छत्रपति संभाजीनगर जिले के वैजापुर तालुका में एक मंदिर में चोरी करते हुए कुछ लोग पकड़े गए. चोरों ने गाँव वालों को बताया कि मंदिर में चोरी यहीं रहने वाले व्यक्ति ने की है.

उस मंदिर में एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति रहते थे. उन्हें चोरी के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था.

जब उन्हें अदालत में लाया गया, तो जज ने पाया कि वे मानसिक रूप से अस्वस्थ हैं और पोलियो से भी पीड़ित हैं. वे दोनों पैरों में कमज़ोरी के कारण चलने में भी असमर्थ थे.

अदालत ने निर्देश दिया कि उन्हें अस्पताल में भर्ती किया जाए क्योंकि वे कुछ शब्द बुदबुदा रहे थे.
अदालत कुछ भी पूछती, वो व्यक्ति उस सवाल का जवाब ‘ॐ नमः शिवाय’ कहकर देते. इन्हें पुणे की येरवडा मानसिक चिकित्सालय में क़ैदी वार्ड में भर्ती कराया गया.

वहाँ के कर्मचारी उन्हें ‘शिवम’ कहकर पुकारने लगे. यह उनका असली नाम नहीं है, बल्कि वहाँ के कर्मचारियों द्वारा दिया गया नाम है.

संबंधित मनोरोग अस्पताल के समाज सेवा विभाग की अधीक्षक रोहिणी भोसले ने बीबीसी मराठी को बताया कि शिवम की उम्र लगभग 50-52 साल है.

शिवम किसी से ज़्यादा बात नहीं करते थे. कर्मचारी जो भी कहते, वे इसे ख़ामोशी से सुनते और उसका पालन करते थे.

साल 2023 में रोहिणी भोसले संबंधित वार्ड की समाज सेवा अधीक्षक बन गईं. उसके बाद रोहिणी ने शिवम की फ़ाइल देखी. उन्होंने शिवम से बात करने की कोशिश की.

शिवम मराठी नहीं जानते थे. जब रोहिणी ने देखा कि वह थोड़ी-थोड़ी हिंदी बोलने की कोशिश कर रहे हैं, तो उन्होंने शिवम से हिंदी में बात करने की कोशिश की.

तभी उन्हें एहसास हुआ कि शिवम पहाड़ी हिंदी में बोल रहे हैं.

शिवम के परिवार का पता कैसे लगाया गया?

यह महसूस करते हुए कि शिवम अपने परिवार या पुरानी यादों के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बता पा रहे हैं, रोहिणी ने शिवम से उनके स्कूल के बारे में पूछा.

जब स्कूल की बात उठी, तो उन्होंने रुड़की के एक स्कूल का नाम बताया. (शिवम की पहचान छिपाने के लिए स्कूल का नाम नाम उजागर नहीं किया गया है)

रोहिणी ने बीबीसी मराठी को बताया, “जब मैंने स्कूल का नाम सुना, तो मुझे पहले तो यह भी नहीं पता था कि यह किस शहर में है. लेकिन फिर बातचीत में हरिद्वार का ज़िक्र हुआ और मैंने गूगल पर देखना शुरू किया कि क्या हरिद्वार और उसके आस-पास इस नाम का कोई स्कूल है.”

रोहिणी कहती हैं, “मुझे शिवम के बताए नाम का एक स्कूल मिला. मैंने शिवम को उस स्कूल की तस्वीर दिखाई और उन्होंने उसे तुरंत पहचान लिया. उनकी आँखों में चमक आ गई.”

इसके बाद रोहिणी ने रुड़की और हरिद्वार की पुलिस से संपर्क किया. फिर जब उत्तराखंड पुलिस ने खोजबीन की, तो उन्हें ऐसे विवरण वाले एक व्यक्ति का रिकॉर्ड मिला.

लेकिन पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज था कि साल 2013 में केदारनाथ में आई बाढ़ में वो (शिवम) बह गए थे.

रोहिणी बताती हैं कि पुलिस ने पहले शिवम के परिवार से संपर्क किया और पूछा कि क्या कोई ऐसा व्यक्ति लापता हुआ है. तब परिवार ने बताया कि उनका भाई केदारनाथ की बाढ़ में बह गया है. जब उनका शव नहीं मिला, तो हमने प्रतीकात्मक तौर पर अंतिम संस्कार कर दिया.

पुलिस ने उन्हें शिवम की तस्वीर दिखाई तो भाई ने शिवम को पहचान लिया.

शिवम वैजापुर कैसे पहुंचे?
शिवम कई सालों से लापता थे. बताया गया है कि वे साल 2013 में आई बाढ़ में बह गए थे, लेकिन वो इस घटना से पहले से ही लापता थे.

रोहिणी बताती हैं कि वे लगभग बीस सालों से घर से दूर थे. शिवम को कुछ भी याद नहीं कि वह उत्तराखंड से वैजापुर कैसे पहुंचे तो वे इस बारे में कुछ नहीं बता सके.

साल 2015 में, शिवम ने वैजापुर के एक मंदिर में रहने लगे. वे वहीं खाते-पीते और सोते थे. साफ-सफाई भी कर लेते थे.

लेकिन रोहिणी ने कहा कि कोई नहीं जानता कि वे वहां कैसे पहुंचे.

तो आखिर शिवम के परिवार ने उन्हें कैसे पहचाना?

दरअसल शिवम के सामने उत्तराखंड में उनके परिवार वालों को वीडियो कॉल किया गया.

शिवम के भाई ने वीडियो कॉल पर बात की और उन्होंने उन्हें पहचान लिया.

इतना ही नहीं, शिवम ने भी अपने भाई को पहचान लिया और सभी की आँखों में आँसू आ गए.

मनोरोग अस्पताल के अधीक्षक डॉ. श्रीनिवास कोलोड ने कहा, “उसके बाद, शिवम अस्पताल में बहुत खुश रहने लगे. ऐसा कहते हैं, ब्लड इज थिकर देन एनी लिलिक्विड. ये चीज हमने हमारी आंखों से देख ली. इतने साल के बाद भी शिवम ने अपने भाई को पहचान लिया था.”

शिवम पर लगे चोरी के आरोपों का क्या हुआ?
शिवम के रिश्तेदार तो मिल गए, लेकिन उन्हें चोरी के मामले से बरी नहीं किया गया था जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और कैदियों के मनोरोग वार्ड में भर्ती करा दिया गया.

रोहिणी भोसले कहती हैं, “जब मुझे इस बारे में पता चला, तो मैंने इस केस का स्टेटस चेक किया.

“लेकिन केस में मुकदमा नहीं चल रहा था. जब पुलिस और जज को इसकी जानकारी दी गई, तब 2023 में चार्जशीट दाखिल की गई. ​​उसके बाद ही केस की सुनवाई हुई.”

चूँकि शिवम चलने में असमर्थ है, इसलिए उन्हें वीडियो कॉल के ज़रिए अदालत में पेश किया गया. चोरी के मामले के संदिग्धों ने अदालत को बताया कि शिवम चोरी में शामिल नहीं थे. लेकिन जब गाँव वालों ने हमें पकड़ा, तो हमने उसी जगह काम करने वाले आदमी का नाम झूठ बोला, इस डर से कि वे हमें मार डालेंगे,

रोहिणी कहती हैं, उनकी गवाही के बाद, सितंबर 2025 में मामले का फैसला सुनाया गया और शिवम को बरी कर दिया गया. इस आदेश की एक कॉपी नवंबर में आई और उसरेबाद हमने शिवम को उनके परिजनों को सौंप दिया.

शिवम के परिवार से मुलाकात और विदाई

रोहिणी कहती हैं कि शिवम और उनके परिवार से मिलना हमारे लिए अविस्मरणीय क्षण था.

रोहिणी ने कहा, “पिछले चार सालों से, अस्पताल के कर्मचारी ब्रदर नीलेश दिघे और सिस्टर कविता गाडे वार्ड में शिवम की बहुत अच्छी देखभाल कर रहे थे.”

“शिवम को अलविदा कहना हमारे लिए एक भावुक क्षण था क्योंकि वह सभी के लिए परिवार के सदस्य जैसा हो गए थे , लेकिन हम सभी इस बात से निश्चित रूप से खुश थे कि वह अपने परिवार के पास जा रहे थे.”

अधीक्षक डॉ. श्रीनिवास कोलोड ने कहा, “पिछले चार-पाँच साल में हमारा उनके साथ एक भावनात्मक रिश्ता बन गया. वे बहुत ही शांत और सौम्य व्यक्ति हैं, अपना काम बहुत अच्छे से करते हैं. चाहे खाने के बाद प्लेटें धोना हो या हमारे बिस्तर लगाना हो, वह अपना काम बहुत अच्छे से करते हैं.”

मनोरोग अस्पताल के अधीक्षक डॉ. श्रीनिवास कोलोड ने कहा कि यह पहला अवसर है जब कैदी वार्ड में किसी मरीज को इस तरह से उसके परिवार से मिलाया गया.

रोहिणी भोसले ने कहा कि शिवम के भाई सरकारी नौकरी में हैं और उन्होंने इस घटना के संबंध में मीडिया में कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है.
रोहिणी ने कहा कि परिवार फिलहाल खुश है, लेकिन साथ ही उन्होंने अनुरोध किया है कि उनकी निजता का सम्मान किया जाए, इसलिए बीबीसी ने उनके परिवार से कोई प्रतिक्रिया नहीं मांगी है.

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