मथुरा।
महिला थाना मथुरा एक बार फिर विवादों में घिर गया है। पलवल (हरियाणा) निवासी एक परिवार ने महिला थाना प्रभारी पर काउंसलिंग के दौरान अभद्रता, रिश्वत मांगने, मारपीट और झूठे मुकदमे में फंसाने जैसे गंभीर आरोप लगाए थे। यह मामला आईजीआरएस तक पहुंचा, जहां तीन अलग-अलग संदर्भ संख्याओं पर विस्तृत जांच कराई गई। जांच रिपोर्ट में शिकायत को आधारहीन बताते हुए किसी कार्रवाई की जरूरत नहीं बताई गई है, लेकिन पूरे घटनाक्रम ने महिला थानों की काउंसलिंग प्रक्रिया और पारदर्शिता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।
काउंसलिंग से शुरू हुआ विवाद
पूरा मामला यशपाल सिंह गौतम और उनकी पत्नी जगरानी के वैवाहिक विवाद से जुड़ा है। जगरानी की ओर से महिला थाना मथुरा में शिकायत दी गई थी, जिस पर महिला थाना ने सुलह-समझौते के लिए 16 सितंबर, 16 अक्टूबर और 12 नवंबर 2025 की तारीखें तय की थीं। 12 नवंबर को दोनों पक्ष महिला थाना पहुंचे। पुलिस जांच के अनुसार, काउंसलिंग के बाद थाना गेट के बाहर ही दोनों पक्षों में कहासुनी बढ़ गई और मामला मारपीट की स्थिति तक पहुंच गया।
शांति भंग में गिरफ्तारी
जांच रिपोर्ट के मुताबिक, महिला थाने के बाहर शिकायतकर्ता जगरानी और उसके परिजनों पर दबाव बनाकर समझौता कराने और शिकायत वापस लेने की कोशिश की गई। हालात बिगड़ने पर थाना सदर बाजार पुलिस मौके पर पहुंची और यशपाल सिंह, उनके पिता सुखपाल सिंह, भाई तरुण कुमार और माता राजेश्वरी देवी को शांति भंग की धाराओं में गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया गया।
परिवार के गंभीर आरोप
वहीं, यशपाल के पिता सुखपाल सिंह गौतम का आरोप है कि महिला थाना में काउंसलिंग के दौरान उनके द्वारा पेश किए गए वीडियो और ऑडियो सबूतों को जानबूझकर नजरअंदाज किया गया। आरोप है कि थाना प्रभारी ने 10 हजार रुपये की रिश्वत मांगी, मना करने पर अभद्रता की गई और उनके छोटे बेटे को थप्पड़ मारा गया। परिवार का यह भी कहना है कि उन्हें हवालात में बंद कर झूठे मुकदमे में फंसाया गया, जिससे उनके मान-सम्मान और मानवाधिकारों का हनन हुआ।
आईजीआरएस जांच में क्या निकला
क्षेत्राधिकारी सदर द्वारा की गई जांच में यह निष्कर्ष निकाला गया कि महिला थाना प्रभारी या कर्मचारियों द्वारा रिश्वत मांगने, मारपीट करने या झूठा केस दर्ज करने के आरोपों की पुष्टि नहीं हुई। रिपोर्ट में कहा गया है कि शिकायतकर्ता पक्ष ने पुलिस पर दबाव बनाने और आगे की कार्रवाई रुकवाने के उद्देश्य से मनगढ़ंत आरोप लगाए।
फिर भी उठे सवाल
हालांकि जांच में पुलिस को क्लीन चिट दी गई है, लेकिन इस पूरे मामले ने महिला थानों में होने वाली काउंसलिंग की निष्पक्षता, व्यवहार और पारदर्शिता को लेकर बहस छेड़ दी है। सवाल यह है कि यदि सबूत पेश किए गए थे तो उन्हें किस आधार पर खारिज किया गया? क्या महिला थानों में सीसीटीवी फुटेज और काउंसलिंग की प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाने की जरूरत नहीं है?
अब आगे क्या
परिवार ने जिला प्रशासन से महिला थाना की सीसीटीवी फुटेज निकलवाकर निष्पक्ष जांच कराने की मांग की है। वहीं, पुलिस का कहना है कि जांच पूरी हो चुकी है और शिकायत निराधार पाई गई है। सच क्या है, यह तो समय बताएगा, लेकिन मामला फिलहाल मथुरा में चर्चा का विषय बना हुआ है।

